क्या कर्नाटक हार से सबक लेगी धामी सरकार? - MeraUK.com

क्या कर्नाटक हार से सबक लेगी धामी सरकार?

राकेश डंडरियाल

देहरादून 14 मई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी मेहनत पर आख़िरकार कर्नाटक की जनता ने पानी फेर दिया, कर्नाटक चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री लगभग 20 दिनों तक कर्नाटक में रहे, रैलियां की, रोड शो किये लेकिन सब कुछ मिटटी में मिल गया । सवाल उठता है कि आखिर डबल इंजन कहां फेल हो गया ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर रैली में कहते हुए नजर आते हैं कि इस प्रदेश को देश का नंबर एक राज्य बनाना है, लेकिन वो कर्नाटक में ऐसा नहीं कर पाए, और दक्षिण भाजपा मुक्त हो गया। गौरतलब है कि कर्नाटक ही वो राज्य है जहाँ से राहुल गांधी के वक्तव्य को एक जाति विशेष का अपमान मानते हुए गुजरात की एक अदालत ने उनकी सांसदी छीन ली थी , तो क्या कर्नाटक की जनता ने बदला इस बात का लिया या वाकई 40% वाली सरकार से कर्नाटक अजीज आ चुकी थी ?

कर्नाटक में अगर 40 % वाली सरकार थी तो उत्तराखंड में 20 % वाली सरकार। ये हम नहीं खुद उत्तराखंड के पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत कहा चुके हैं उन्होंने पिछले दिनों एक वक्तव्य जारी करते हुए कहा था कि सरकारी योजनाओं से जुड़े विकास कार्यों में 20 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है। तो क्या 2024 में कांग्रेस इस मुद्दें को भी कर्नाटक की तरह भुनाएगी ?

उत्तराखंड से भी भाजपा नेताओं की एक बड़ी फ़ौज कर्नाटक गई, लेकिन रिजल्ट उनकी आशा के विपरीत रहा,अब विधानसभा चुनाव में मिली हार से पार्टी अचानक सकते में है। सियासी जानकारों की माने तो कर्नाटक की हार ने उत्तराखंड भाजपा के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। प्रदेश की धामी सरकार के खिलाफ भ्रस्टाचार की लगातार खबरें सार्वजनिक हो रही हैं, उनके मंत्रियों के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही हैं, लेकिन सरकार जिस प्रकार से उन्हें एक सिरे से नकार रही है, एक दिन वही धामी के लिए सिरदर्द साबित हो सकती हैं। धामी जब से मुख्यमंत्री बने हैं तब से लगातार एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं ।

उत्तराखंड में भी अक्सर डबल इंजन वाली सरकार का जिक्र होता है, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीतने वाली भाजपा सरकार ये कही भी साबित नहीं कर पाई कि उत्तराखंड में डबल इंजन जैसा कुछ चल रहा है , वही ढाक को दो पात , क्रेडिट के नाम पर चारधाम यात्रा और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, के अलावा कुछ नहीं ,भाजपा सरकारें न तो पलायन रोक पायी और न ही भ्रष्टाचार, न ही रोजगार का सृजन हुआ और न ही रुकी नक़ल।

ऊपर से अंकिता भंडारी हत्याकांड में भाजपा नेता का बचाव, मंत्रियों, विधायकों द्वारा सरे आम लोगों की पिटाई करना , एक के बाद एक पेपर लीक के मामले सामने आना , जोशीमठ आपदा के दौरान पीड़ितों को नक्सली कहकर पुकारना , धामी के लिए चुनौतियां पेश कर सकती हैं , सरकार अपनी हवा बनाने के लिए विकास पर ध्यान न केंद्रित कर प्रचार में ज्यादा मस्त है । प्रदेश मंत्रिमंडल में चार सीटें खाली हैं। इन सीटों को भरने के लिए सरकार फिलहाल तेजी नहीं दिखा रही है। कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल के मारपीट प्रकरण से धामी सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं विपक्ष के लगातार विरोध और सोशल मीडिया में जिस तरह मंत्री के खिलाफ लोगों की ओर से गुस्से का इजहार हो रहा है, उससे मंत्री पर इस्तीफे का दबाव बना हुआ है ।

वेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है, वो एक बार सड़क पर उतर चुके हैं, उनकी मांगें भी आने वाले समय में धामी सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकती हैं। पिछले 9 साल में अगर उत्तराखंड के सांसदों की परफॉरमेंस को आँका जाए तो वे भी हवा हवाई साबित हुए हैं । राज्य के विधायकों का ये हाल हैं कि उनसे अपनी विधायक निधि तक नहीं खर्च हो पा रही है , ऐसे में जनता तक विकास पहुंचेगा तो पहुंचेगा कैसे ?

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा को जमीनी तौर पर परिणाम दिखाने होंगे बरना ये जनता हैं सब जानती है, और अगर वह जान गई तो मुख्यमंत्री के लिए 2024 के बाद अपनी कुर्सी बचाना भी मुश्किल होगा।

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