तीन अध्यापकों के सहारे देवीखाल कोठा (बीरोंखाल) का ये राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय

पौड़ी गढ़वाल के दुरस्त इलाके से लगा हुआ है राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय देवीखाल कोठा

जगमोहन पटवाल

बीरोंखाल 19 मई। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती ये रिपोर्ट है राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय देवीखाल कोठा,बीरोंखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल की। स्कूल की मान्यता कक्षा 6 से लेकर 10वीं तक है, लेकिन शिक्षकों की अगर बात करें तो मात्र 3 अध्यापकों के सहारे चल रहा है ये स्कूल। स्कूल में कक्षा 6 से लेकर 8 तक एक अध्यापक और 9वीं 10वीं के लिए दो अध्यापक कार्यरत हैं। इन अध्यापकों पर बच्चों को पढ़ाने का ही नहीं बल्कि अन्य कार्यों जैसे मध्यहान भोजन योजना,विभागीय कागजी कार्यवाही को पूरा कर रिपोर्ट विभाग को सौंपने की जिम्मेदारी भी है। ऐसे में छात्रों के अध्ययन को लेकर अध्यापकों ने अभिभावकों की बैठक बुलाकर,अपनी गहरी चिंता जताते हुए बच्चों के भविष्य को लेकर समाधान करने की बात कही है ।

दूसरी ओर क्षेत्रीय जनता व जनप्रतिनिधियों का कहना है कि इस विषय पर वर्षों से शासन-प्रशासन,क्षेत्रीय विधायकों,नेताओं से लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों से कई बार अध्यापकों की नियुक्ति को लेकर मांग की गई ,लेकिन झूठे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सका है।

अध्यापकों की कमी,विशेषकर गणित,विज्ञान विषय के अध्यापकों के न होने के कारण क्षेत्र के कई प्रतिभाशाली बच्चे दूसरे शहरों,स्कूलों में पढने चले गए या फिर गणित,विज्ञान के अध्ययन से वंचित हो रहे हैं। बैठक में क्षेत्रीय जनता द्वारा निर्णय लिया गया है कि अगर जुलाई प्रथम सप्ताह के अंदर विधालय में अध्यापकों व कार्यालय कागजी कार्यों के लिए अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति नही हो पाती है, तो हमें मजबूर होकर सरकार के विरुद्ध आंदोलन करना होगा,जिसके प्रथम चरण में शासन से अनुमति लेकर खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय बीरोंखाल में धरने पर बैठ जाएंगे।

एक ओर उत्तराखंड की सरकार पहाड़ों से पलायन को रोकने की बात कर रही है,तो दूसरी ओर पहाड़ों के विकास को लेकर गंभीरता नजर नहीं आती। शिक्षा पलायन के मूल कारणों में से एक है। उत्तराखण्ड निर्माण के बाद पहाड़ के स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था दिन-प्रतिदिन गिरती गई। जिसके बाद प्रदेश के ज्यादातर पहाड़ी स्कूलों में अध्ययन की गुणवत्ता पर भी सवाल पैदा हो रहे हैं पाठ्यक्रमों में भी बदलाव कर उन्हें कुछ विशेष नही किया गया है।

पहले चौथी और पांचवीं के छात्र को ज्ञात होता था कि पौधे प्रकाश से भोजन बनाते हैं,गेहूँ उत्तर प्रदेश,पंजाब-चावल,बंगाल में अधिक होता है,लेकिन अगर यही बात आप दसवीं पास छात्र को पूछेंगे तो उसे शायद ही ज्ञात होगा। प्रदेश की हालत ये है कि सुगम क्षेत्रों में छात्रों की संख्या कम होने पर भी अध्यापकों की कोई कमी नहीं है,तो दुर्गम क्षेत्रों में अधिक छात्र होने पर भी अध्यापकों की कमी नजर आ रही है, कारण सरकारों के द्वारा विभागों के कर्मचारियों की मनमानी के आगे नतमस्तक और कर्मचारियों की नेताओं व सबंधित विभागों के उच्च अधिकारियों से अच्छी जान-पहचान को बताया जा रहा है। दुर्गम क्षेत्रों में पदोन्नति लेकर भी कोई कर्मचारी नही जाना चाहता है।

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