नरसिंहपुर 11 सितम्बर। ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 साल की आयु में रविवार को निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में माइनर हार्ट अटैक आने के बाद दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर अंतिम सांस ली।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। हाल ही में वे आश्रम लौटे थे। शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। स्वामी शंकराचार्य आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।
स्वामी का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और माता का नाम गिरिजा देवी था। ब्राह्मण परिवार में जन्में स्वरूपानंद सरस्वती ने कम उम्र में ही धार्मिक यात्राएं शुरू कर दी थी।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 9 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। इसके बाद वो काशी पहुंचे। काशी में उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा हासिल की। एक बात यह भी है कि महज नौ साल की उम्र में घर छोड़ने वाले स्वरूपानंद सरस्वती 19 साल की उम्र में ‘क्रांतिकारी साधु’ भी कहे जाने लगे।
दरअसल जब 1942 में देश में अंग्रेज भारत छोड़े का नारा बुलंदियों पर था तब स्वरूपानंद सरस्वती भी देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी। उसी वक्त उन्हें क्रांतिकारी साधु भी कहा गया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय स्वरूपानंद सरस्वती को उन दिनों जेल में भी जाना पड़ा था।
उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी है। वो करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। सन् 1940 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।