देहरादून : प्रदेश की बेलगाम ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने के लिए मुख्यमंत्री ने पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने उत्तराखंड वन विभाग में दो आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ कड़ा फैसला लेते हुए दोनों अफसरों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है । जिसके बाद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का उनके फेसबुक अकाउंट से एक लेख सामने आया है जिसमे उन्होंने लिखा है कि आजकल आप राज्य के प्रमुख समाचार पत्रों को पढ़िये तो हर समाचार पत्र में 2 से 3 खबरें ब्यूरोक्रेसी के बेलगामपन और उसको साधने के लिए माननीय मंत्रीगणों की चेतावनी या उनके द्वारा उठाए जा रहे कदम जिसमें सचिवों की CR लिखने के अधिकार की पुनः प्राप्ति से जुड़े हुए होते हैं।
मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रीगण तक ब्यूरोक्रेसी को इस अंदाज में धमकाते हुए दिखाई दे रहे हैं जैसे अब आगे सब चुस्त-दुरुस्त हो जाएगा, अच्छी बात है। मगर मैं एक बात समझ नहीं पा रहा हूँ कि ब्यूरोक्रेसी में ये सारी खामियां चुनाव के बाद और भाजपा को दो-तिहाई बहुमत से सत्ता मिलने के बाद ही क्यों उजागर होती है! क्या इससे पहले किसी और पार्टी की सरकार थी? क्या पहले के 5 वर्षों में जो तीन मुख्यमंत्री व मंत्रीगण थे, कहीं और से आयातित थे? मंत्रियों के अंदाज और समाचारों की शब्दावली से ऐसा आभास होता है कि पहले सब गड़बड़ था, अब सब ठीक किया जा रहा है, खैर हम भी ठीक करने के लिए उठाये जा रहे कदमों का इंतजार करते हैं! उन्होंने लिखा है कि आज वे इस विषय पर फिर से ट्वीट कर अपने विचार व्यक्त करेंगे , उन्होंने आगे लिखा है कि मेरी कोशिश रहेगी कि मैं ऐसे 8-10 लगातार ट्वीट्स के द्वारा खामी कहां है, उसको आगे लाने का प्रयास करूंगा।
गौरतलब है कि मार्च 29 को दोबारा कैबिनेट मंत्री बने सतपाल महाराज ने कहा था कि विभागीय सचिव की सीआर मंत्रियों द्वारा लिखी जानी चाहिए,उन्होंने पहली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुरोध किया कि आईएएस अफसरों जिसमें सचिव व अपर सचिव स्तर स्तर के लोग होते हैं उनके विभागों को जो मंत्री है उन मंत्रियों द्वारा उन अधिकारीयों की गोपनीय आख्या लिखने का प्रावधान होना चाहिए। जिसके बाद मुख्यमंत्री ने एक कमेटी बनाने का फैसला किया था।