देहरादून 18 जनवरी। उत्तराखंड के दरोगा भर्ती प्रकरण में आख़िरकार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दर्द सामने आ ही गया है, उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा है कि, उत्तराखंड पुलिस अपने ही साथियों के विश्वास की रक्षा नहीं कर सकी। उन्होंने आगे लिखा कि, दरोगा भर्ती नकल प्रकरण में पहले मैंने सोचा था कि, मैं चुप रहूं! क्योंकि यह भर्तियां मेरे कार्यकाल में हुई थी और वर्षों से नहीं हुई थी, तो इसलिए मैंने यह भर्तियां करने के निर्देश दिए। इसी तरीके से बहुत सारी डीपीसीज, कैडर रिव्यू और एश्योर करियर प्रमोशन की स्कीम आदि को मैंने क्रियान्वित किया, ताकि कर्मचारियों को भी उनका उचित पुरस्कार मिल सके और यदि आप पता करेंगे तो ऐसे आधे से ज्यादा निर्णय कांग्रेस के 2014 से 2016-17 के कार्यकाल के बीच में में हुए थे। मगर इस भर्ती प्रकरण में जिस तरीके से मेरे कुछ दोस्त हरीश रावत कार्यकाल कह रहे हैं, तो उनसे मेरा आग्रह है कि, इस पूरे प्रकरण की अध्योपरांत जांच की जाए, इसमें आईजी विजिलेंस, एडीजी विजिलेंस, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर और डीजीपी, इन सबसे भी पूछताछ की जानी चाहिए।
इसलिए नहीं कि, मैं इनकी संलिप्तता देख रहा हूं, बल्कि इसलिए की जानी चाहिए की पुलिस के घर में पुलिसवालों में इस तरीके की नकल और भ्रष्टाचार, उत्तराखंड पुलिस पर एक बड़ा दाग है और इस दाग से हममें से कोई नहीं बच सकता है! तो इसलिए उन सबको भी कानून और पूछताछ के दायरे में लाया जाना चाहिए। यदि पुलिस अपने ही बीच में विश्वास की रक्षा नहीं कर सकती है, तो फिर राज्य के लोगों के विश्वास की रक्षा क्या कर पाएगी? यह प्रकरण अत्यधिक चिंताजनक है, यदि इसका इलाज नहीं हुआ तो फिर यह कैंसर की ही तरह से उत्तराखंड राज्य के शरीर को गलाएगा।