देहरादून 14 दिसंबर। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश ने एक बार फिर से पुष्कर सिंह धामी सरकार पर हमला बोला है, उन्होंने अपने फेसबुक पर अंकिता भंडारी केस में सादने का और समाधान निकाल पाने का आरोप लगाया है।
हरीश रावत ने लिखा है कि, अंकिता भंडारी ने अपने दोस्त को मैसेज किया कि, रिजॉर्ट में वीआईपी आने वाले है और मुझ पर दबाव डाला जा रहा है कि मैं उनको एस्कॉर्ट करूं, मैं ऐसा करना नहीं चाहती हूं। वीआईपी रिजॉर्ट में आते हैं, उनके साथ एकाध और मेहमान तथा कुछ बाउंसर और कुछ सुरक्षाकर्मी होते हैं। उसके एक-दो दिन के अंतराल में अंकिता की हत्या कर दी जाती है। अंकिता के शव और मोबाइल को निकालने में विलंब, अपराधियों की गिरफ्तारी में टाल-मटोल और विलंब, रिजॉर्ट में सीसीटीवी कैमरे की वायरिंग तोड़ दी जाती है, रिजॉर्ट में बुलडोजर फिराया जाता है, अपराध से जुड़े एक प्रमुख स्थल फैक्ट्री में दो बार आग लगाई जाती है या लग जाती है और विधानसभा में शासन का बयान आता है कि, रिजॉर्ट में कोई वीआईपी नहीं आया था, बल्कि वहां एक कक्ष का नाम ही वीआईपी कक्ष है और वहां रुकने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वीआईपी कहा जाता है।
क्या ये सारी कड़ियां संदेह के बाद संदेह को और पुष्ट तो नहीं करती कि, अंकिता हत्याकांड के साथ जुड़ा हुआ कोई ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति है, जिसको बचाने के लिए सत्ता निर्लज्जता पूर्ण आचरण कर रही है और साक्ष्य नष्ट करने में लगी है, यदि रिजॉर्ट में कोई वीआईपी कक्ष है तो वहां रुकने वालों का भी तो कोई ब्यौरा होगा? अपनी अस्मिता बचाने के लिए चिंतित अंकिता जिसने अंततः अपने प्राण गवा दिए क्या उसने जो मैसेज अपने दोस्त को भेजा वह झूठ है? अंकिता हत्याकांड की स्वभाविक पैरोकार उसके माता-पिता और अत्यधिक महत्वपूर्ण साक्ष्य अंकिता के दोस्त को क्या कोई सुरक्षा प्रदान की गई है, ताकि वह निर्भीकता से अपने कर्तव्य का पालन कर सकें? क्या राज्य की एसआईटी को यह तथ्य मालूम है कि उस रिजॉर्ट में सुरक्षाकर्मियों और बाउंसरों के साथ एक-दो व्यक्ति आए थे, क्या उनसे पूछताछ की गई है? जो नाम प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में चर्चित हैं क्या उनसे पूछताछ की गई है? यह बहुत सारी आशंकाएं हैं, जो उत्तराखंड को बेचैन कर रही हैं, आखिर इन आशंकाओं के समाधान की अपेक्षा किससे की जानी चाहिए?