देहरादून 21 मार्च। जल और जंगल हमारी धरोहर हैं, ये धरोहर ही नहीं बल्कि आम प्राणी का जीवन चक्र भी है। 21 मार्च का दिन दुनियाभर में ‘अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक ओर जहाँ पर्यावरण प्रेमी करोड़ों पेड़ लगाकर दुनिया व पृथ्वी को बचाना चाहते हैं, वहीं एक दूसरा पक्ष भी है, जो वनों की छटाई के नाम पर कटाई करने में लगा हुआ है। इसका जीता जागता उदाहरण है उत्तराखंड स्थित नेशनल कॉर्बेट पार्क , जहाँ आजकल धनगढ़ी स्थित कॉर्बेट पार्क के मुख्य गेट से लेकर दो कलोमीटर के एरिया में हजारों की संख्या में शाल और सागौन के पेड़ काट दिए गए हैं। इनकी आधिकारिक संख्या 3387 है। सरकार और प्रशासन के लिए ये महज प्रक्रिया है, लेकिन पर्यावरण के लिए केवल वनों का दोहन।
माय यूके के एडिटर ने जब इस इलाके में काटे गए हजारों पेड़ो के देखा तो इस बारे में सरकारी पक्ष जानने के लिए पार्क के डायरेक्टर राहुल वर्मा को एक नहीं कम से कम 10 बार फ़ोन किए, लेकिन अधिकारी तो बस अधिकारी हैं, आखिर कार लंबी जद्दोजहद के बाद हमारा संपर्क हो पाया रामनगर वन बिभाग के अधिकारी शेखर तिवारी से, उन्होंने फ़ोन पर बताया कि पेड़ एक निर्धारित प्रिक्रिया के तहत काटे जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पेड़ों के कटान की एक निर्धारित प्रक्रिया होती है, जिसमे केंद्र सरकार से बाकायदा पत्र जारी होता है। जब राजसत्ता ने भारत सरकार द्वार जारी किए गए आदेश की कॉपी मांगी तो अधिकारी उसे भी दिखाने में असफल रहे।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
दूसरी तरफ देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की ही एक मामले में पिछले साल नवंबर में कहा था कि, पेड़ काटने के आदेश में गोपनीयता बरतना सुशासन के खिलाफ है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, पेड़ों को काटने की अनुमति सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि गोपनीयता का पर्दा पर्यावरण मंजूरी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यह कानूनी उपायों का उपयोग करके नागरिकों से चुनौती देने का अधिकार छीन लेता है। पीठ ने कहा है कि पारदर्शिता की कमी से जवाबदेही में कमी आती है। कोर्ट ने यह आदेश उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-72ए की सड़क के हिस्सों के लिए वन अधिकारी द्वारा पेड़ों को काटने पर दी दिया था।