रायपुर 10 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ में उत्तराखंड समाज विकास समिति के तत्वावधान में वृन्दावन हाल सिबिल लाइन में उत्तराखंड भाषा प्रसार समिति का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ बिहारीलाल जलन्धरी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता उतराखण्ड समाज विकास समिति के संयोजक हर्षवर्धन बिष्ट ने की, इस अवसर पर डॉ जलन्धरी ने कहा कि, हम अपनी जड़ों से हट रहे हैं, यदि हम प्रवास में आकर मजबूत हुए हैं, तो हमें पहाड़ में अपने गांव में अपनी बपौती का भी संरक्षण करना होगा। उन्होंने कहा कि, सन् 2026 में उत्तराखंड सरकार द्वारा भू-बंदोबस्त किया जाएगा जिसमें, सारी बंजर भूमि को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर दिया जाएगा। हमें अपनी धरोहर को बचाने के लिए अपनी जड़ों की ओर जाना होगा जिसमें मूल निवास प्रमाणपत्र के अलावा अन्य कई बुनियादी समस्याओं का समाधान भी आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि, हम अपनी मातृभूमि से कोसों दूर आ गए, परंतु आज हमारी अगली पीढ़ी हमारी बोली भाषा, त्योहार, रीति-रिवाज को छोड़ती जा रही है, अपनी बोली भाषा को बचाने के लिए हमें उसे बोलचाल लिखने-पढ़ने में प्रयोग करना होगा इसके लिए हमारे पास उतराखण्डी भाषा का पहला प्रारूप पाठ्यक्रम मौळ्यार है, जिसे गढ़वाली-कुमाऊनी के समान शब्दों को समेकीकृत कर एक रोचक विषय तैयार किया है, इसके माध्यम से हम अपनी बोली भाषा का बोध अगली पीढ़ी को करवा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि, उत्तराखंड में 14 बोलियां हैं, जिनमें गढ़वाली-कुमाऊनी को संविधान में सूचीबद्ध करने की मांग हो रही है। भारत सरकार की प्रतीक्षारत सूची में गढ़वाली 12 वें और कुमाऊनी 22 नंबर पर हैं। यह दोनों उतराखण्ड की भाषाएं हैं, यदि इन दोनों के समान शब्दों के आधार पर एक प्रतिनिधि भाषा की बात की जाए और उत्तराखंड समाज पूरे देश में जनगणना के अवसर पर अपनी मातृभाषा के बाद उत्तराखंडी भाषा का उल्लेख करे तो, निसंदेह आंकड़ों के आधार पर हमारी भाषा दूसरे या तीसरे नंबर पर आ जाएगी जिसे संविधान में सूचीबद्ध करने अधिक समय नहीं लगेगा, उसके बाद ही वह एक प्रतिष्ठित भाषा और फिर प्रादेशिक भाषा का स्थान प्राप्त करेगी। उन्होंने कहा कि, उत्तराखंड में दानिक्स सेवाओं की परीक्षा में एक विषय स्थानीय भाषा का भी होना चाहिए जो, उसे पास करेगा उसी की नियुक्ति की जाए, क्यों कि, इन अधिकारियों का स्थानीय लोगों से अधिक संपर्क होता है ।
इस अवसर पर हर्षवर्धन बिष्ट ने कहा कि, उत्तराखंड राज्य बने 22 वर्ष हो चुके हैं, परंतु समस्या जो पहले थी वह आज भी हैं। राज्य की राजधानी, भाषा, रोजगार, पलायन, जंगली जानवरों द्वारा किए जा रहे जानमाल के नुकसान से सरकार बेखबर है। हम भी चाहते हैं कि, सेवानिवृत्ति पर हम पहाड़ में अपने गांव में सुकून से रहें परंतु, सरकार ने प्रवासियों की घर वापसी के संबंध में कोई नीति ही नहीं बनाई है।
इस अवसर पर कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे, बैठक में उपस्थित कुछ मुख्य प्रबुद्ध व्यक्तियों में सर्व रवीन्द्र प्रसाद हर्षवाल, मनोज भट्ट, सोबन सिंह रावत, सुभाष कुमार लखेड़ा, रोहिताश्व त्रिपाठी, सैनसिंह रावत, प्रकाश कांडपाल, जय सिंह रावत, नरेश बिष्ट, शेखर सिंह रावत, उत्तम सिंह रौथाण, डॉ डी.एस. सामंत, आर.एस. भाकुनी, अनिल कुमार भट्ट, नीरज शर्मा, दीपक खंडूरी, एम.पी. खंडूरी, एम.एस. रावत, नवीन कुमार और रमा जोशी के अलावा कई लोगों की उपस्थित रही। मंच संचालन हर्षवर्धन बिष्ट द्वारा किया गया।