जोशीमठ के बाद भू-धंसाव की चपेट में रुद्रप्रयाग का मरोड़ा गांव

मौके पर पहुँची उत्तराखंड क्रांति दल की टीम 

रुद्रप्रयाग 10 जनवरी ।      उत्तराखंड क्रांति दल की टीम ने रेलवे प्रोजेक्ट से प्रभावित मरोड़ा (घोलतीर) गांव का जायज़ा लिया। यूकेडी ने कहा कि, जल्द से जल्द प्रभावितों का पुनर्वास किया जाए। मरोड़ा गांव में लोगों के आवासीय घर ज़मीदोज़ हो गए हैं, इस गांव के तकरीबन चालीस परिवारों में से आधे परिवारों ने गांव छोड़ दिया है, और अब वे किराए के मकान में रह रहे हैं और आधे परिवार टीन शेड में रहने के लिए विवश हैं। प्रभावितों का कहना है कि, पिछले कई माह से रेलवे की ओर से उन्हें किराया नहीं दिया गया है, वहीं टीन शेड में बिजली-पानी की सुविधा तक नहीं है।

यूकेडी के जिलाध्यक्ष बुद्धिबल्लभ ममगाई ने कहा कि, प्रशासन की ओर से प्रभावितों को नवंबर माह में मुआवज़ा देने का वायदा किया गया था, लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं दिया। बताया जा रहा है कि, मुआवजे की धनराशि ऊँट के मुंह में जीरे के समान है। इस धनराशि से प्रभावित बमुश्किल जमीन ही खरीद सकते हैं। प्रभावित चाहते हैं कि, उनका पुनर्वास हो, उन्हें मकान और गौशाला बनाकर दी जाए, साथ ही खेती के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए, ताकि वह पशुपालन और खेती-बाड़ी से अपनी आजीविका चलाते रहें। अभी तक उनकी आर्थिकी का मुख्य स्रोत पशुपालन और खेती-बाड़ी ही है।

यूकेडी के केंद्रीय मीडिया प्रभारी मोहित डिमरी और वरिष्ठ उपाध्यक्ष भगत चौहान ने प्रभावित ग्रामीणों से कहा कि, वह उनके हक की लड़ाई पूरी शिद्दत के साथ लड़ेंगे, इससे पूर्व भी यूकेडी की टीम दो बार प्रभावित क्षेत्र में आ चुकी है। प्रभावितों की समस्याओं के निस्तारण और उन्हें न्याय दिलाने के लिए शासन-प्रशासन के साथ ही रेलवे के उच्चाधिकारियों से वार्ता की जाएगी।

घर ध्वस्त होने की चिंता में पति ने की आत्महत्या: सुधा देवी

रेलवे प्रोजेक्ट से प्रभावित मरोड़ा गांव की सुधा देवी और उसके पति ने दिन-रात एक कर अपने परिवार के लिए एक आशियाना बनाया था, जो अब ध्वस्त हो गया है। सुधा बताती है कि, “बेघर होने से उनके पति चिंता में डूब गए थे, इसी गम में उन्होंने आत्महत्या कर दी, उन्होंने दूध बेचकर पैसे जमा किए और खुद मेहनत-मजदूरी कर दो वर्ष पूर्व अपने लिए एक घर बनाया था। आज वह अपने परिवार के साथ एक सरकारी भवन में रहने को मजबूर है, जिसे अब खाली करवाया जा रहा है। उनके परिवार में छोटे-छोटे बच्चे हैं, ऐसी स्थिति में कहां जाएंगे, उसे समझ नहीं आ रहा है। मकान का मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है।”

यूकेडी के केंदीय मीडिया प्रभारी मोहित डिमरी ने कहा कि, गांव में ऐसे और भी परिवार हैं, जिन्हें भविष्य की चिंता सता रही है। जल्द प्रभावितों के पुनर्वास की व्यवस्था न हुई तो अन्य लोग भी इसी तरह अपनी जान दे सकते हैं।

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