सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई रोक

नई दिल्ली 15 फरवरी। गुरुवार को देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने लोक सभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार के 6 साल पुराने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ये स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। अब13 मार्च को पता चलेगा किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया।।
सुप्रीम कोर्ट ने नियमित सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ECI) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बॉन्ड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने की है। इस बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की जानकारी पब्लिश करने के लिए कहा है। इस दिन पता चलेगा कि किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया। यह फैसला 5 जजों ने सर्वसम्मति से सुनाया। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘पॉलिटिकल प्रोसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।’

2018 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। 6 साल में चुनावी बॉन्ड से भाजपा को 6337 करोड़ की चुनावी फंडिंग हुई। कांग्रेस को 1108 करोड़ चुनावी चंदा मिला।

किस पार्टी को कितना मिला

तीन बड़ी संस्थाओं ने बताई थी खामी

 

अब आगे क्या
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह पता चलेगा कि किस कंपनी, किन लोगों से कितना पैसा मिला है। 2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा।

क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
केंद्र सरकार ने 2017 में ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है। देश का कोई भी नागरिक या कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहते हैं तो उन्हें एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीदने होंगे. वे बॉन्ड खरीदकर किसी भी पार्टी को दे सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट में असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देते हुए कहा गया कि इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट की ओर से किया गया। उन्होंने इसे पार्टियों को दिया है।

कौन खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती हैं। ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं। हालांकि इन्हें प्राप्त केवल राजनीतिक दल ही करते हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या राज्य चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों। चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से मिलते हैं। इन बॉन्ड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 29 शाखाओं से खरीदा जा सकता है। इसमें नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कलकत्ता और गुवाहाटी समेत कई शहर में हैं।

 

 

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