नई दिल्ली 16 जून। भारत और चीन के बीच तीन साल पहले 15-16 जून, 2020 को गलवान घाटी में संघर्ष हुआ था। इस घटना को अब तीन साल बीत चुके हैं। अक्टूबर 1975 के बाद लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल पर पहली बार गलवान में 20 सैनिकों की शहादत हुई थी। इससे पहले 1974 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में एक चाइनीज एम्बुश (घात ) में असम राइफल्स के चार जवान मारे गए थे।
इस बीच जनवरी २०२३ में IB इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा आयोजित वार्षिक डीजीपी कॉन्फ्रेंस में लेह सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस पी.डी. नित्या ने एक पेपर सबमिट किया, जिसके मुताबिक, भारत पूर्वी लद्दाख में 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट्स में से 26 गंवा चुका है। ऐसा भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा गश्त नहीं करने के कारण हुआ है।
पी.डी. नित्या ने आगे कहा, जिन क्षेत्रों में असहमति के कारण बफर जोन बनाए गए हैं, वहां सेना की तैनाती न होना से भारत को ही नुकसान होगा। यह बफर जोन बाद में नियंत्रण रेखा का रूप ले लेंगी, जिससे भारत अंतत: इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खो देगा।” सेवानिवृत्त सेना अधिकारी और भारत के चीन विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि बफर जोन से भारत को नुकसान होगा। वे कहते हैं कि नई दिल्ली को बीजिंग को बताना चाहिए कि बफर जोन बनाना समस्या का समाधान नहीं हैं, बल्कि यह किसी सीधी लड़ाई से बचने के लिए उठाया गया एक कदम है।
इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि डिसएंगेजमेंट प्रक्रिया में कितनी भूमि को बफर जोन में परिवर्तित किया गया है। चीन इन क्षेत्रों व अरुणाचल , हिमाचल व उत्तराखंड से जुड़े इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर रहा है, जिसमें पैंगोंग झील के किनारे दो पुल शामिल हैं। यह पुल उत्तरी तट से दक्षिणी किनारे तक आसानी से आवाजाही के लिए बनाई गई है। इसके अलावा चीन का प्लान सड़क और आवास बनाना भी है। दूसरी तरफ भारत भी अपनी ओर से बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास कर रहा है। सड़कें, पुल, सुरंगें, हेलीपैड और सैनिकों के लिए आवास बना रहा।