न्याय दिलाने, व जेल प्रबंधन फिसड्डी साबित हुआ उत्तराखंड

नई दिल्ली। टाटा ट्रस्ट की पहल पर ‘सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज और कामनवेल्थ ह्यूमैन राइट्स इनिशिएटिव’ ने देश के सोशल जस्टिस सिस्टम पर इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 हाल ही में जारी की है। रिपोर्ट में देश के एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 राज्यों में उत्तराखंड को न्याय प्रदान करने के मामले में 14वें स्थान मिला है। बड़े राज्यों में कर्नाटक की रैंकिंग सबसे ऊपर है । राजस्थान, बिहार, पश्चिमी बंगाल और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की ओवर ऑल रैंक उत्तराखंड से नीचे है।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 में देश के हर राज्य की पुलिस, न्याय पालिका, जेल, कानूनी सहायता और मानव अधिकार सहित अनेक मापदंडों के आधार पर प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्यन किया किया गया है। 2019 में उत्तराखंड की 15वीं ओवर ऑल रैकिंग थी। 2020 की रिपोर्ट में भी उत्तराखंड 15वीं रैंक पर बरकरार रहा, लेकिन 2022 रैकिंग में एक अंक का सुधार हुआ।

33% महिला पुलिसकर्मी : रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्यों में महिला पुलिसकर्मी मौजूदा दर इसी तरह से बढ़ती रहीं तो 33 प्रतिशत तक पहुंचने में में त्रिपुरा को 554 वर्ष, पुडुचेरी को 318 वर्ष, अंडमान-निकोबार को 226 वर्ष, झारखंड को 206 वर्ष और राजस्थान को 103 वर्ष लगने का अनुमान दिया गया। वहीं यूपी को इसमें 6 वर्ष, हरियाणा को 27, पंजाब को 25, उत्तराखंड को 20 और हिमाचल प्रदेश को 53 वर्ष लगेंगे।

जेल प्रबंधन के मामले में उत्तराखंड का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, एक करोड़ से अधिक की आबादी वाले 18 राज्यों में उत्तराखंड की सबसे अंतिम रैंक है। 2020 की तुलना में राज्य की रैकिंग में कोई सुधार नहीं हुआ।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में हर व्यक्ति पर कानूनी सहायता के के लिए सालभर में मात्र 3.84 रुपये ही खर्च होते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक समय पर इंसाफ देने के मामले में कर्नाटक के बाद तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल है। इस रैंकिंग में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे 18वें नंबर पर है।

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